नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि घर में पड़ी छड़ी को घातक हथियार नहीं कहा जा सकता।
न्यायमूर्ति बी.आर. की पीठ गवई और जे.बी. पारदीवाला (JB Pardiwala) ने आरोपी की सजा को IPC की धारा 302 (हत्या) से धारा 304 IPC (गैर इरादतन हत्या) (Culpable homicide) में बदल दिया।
इस मामले में पत्नी ने छड़ी से कई वार किए, जिसके परिणामस्वरूप मस्तराम की मौत हो गई, क्योंकि उनकी बेटी ने राष्ट्रीय कैडेट कोर शिविर में भाग लेने के लिए उनसे कुछ पैसे मांगे थे। मना करने पर पति-पत्नी के बीच विवाद हो गया।
पूछताछ में यह भी पता चला कि मस्तराम झगड़ालू स्वभाव का था और आए दिन अपनी पत्नी से मारपीट करता था। ऐसी ही एक घटना में पति की पिटाई से पत्नी का एक पैर टूट गया।
माँ ने बेटी को दिए थे 500 रूपए, बना विवाद का कारण
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पत्नी द्वारा अपनी बेटी को 500 रुपये देने के लिए सहमत नहीं होने के कारण उकसावे के कारण अपने पति की मौत हो गई।
पीठ ने नोट किया कि अपराध में इस्तेमाल किया गया हथियार एक छड़ी थी जो घर में पड़ी थी और कहा कि किसी भी तरह से छड़ी को “घातक हथियार” नहीं कहा जा सकता।
आजीवन कारावास की सजा
2022 में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता को IPC की धारा 302 और 201 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति दी और संदेह का लाभ यह कहते हुए बढ़ा दिया कि किया गया अपराध IPC की धारा 300 के अपवाद के तहत आएगा, न कि 302 IPC के तहत।
महिला को रिहा करते हुए इसने कहा, “अपीलकर्ता को लगभग 9 साल की अवधि के लिए पहले ही कैद में रखा जा चुका है और इसलिए हम पाते हैं कि पहले से ही सुनाई गई सजा न्याय के उद्देश्य को पूरा करेगी।”