कीव: युद्धग्रस्त यूक्रेन के कई शहरों में रात का तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। खून जमा देने वाली इस सर्दी ने यूक्रेन पर कब्जे के लिए 14 दिन से संघर्षरत रशियन सैनिकों की मुश्किल बढ़ा दी है। वह मार्च में ऐसे मौसम में रहने के आदी नहीं हैं।
रशियन सेना अभी तक न तो कीव और न ही खार्किव पर कब्जा कर सकी है। इस हालात पर ब्रिटिश सेना के पूर्व अधिकारियों ने दावा किया है कि यूक्रेन के कई शहरों में इन दिनों रात का तापमान -10 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गया है।
इस कारण रूसी सैनिक अपने टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों के अंदर ठंड से जूझ रहे हैं। आने वाले दिनों में यूक्रेन में ठंड और ज्यादा होगी। तब रूसी सैनिकों के लिए 40 टन के लोहे के ढांचे के अंदर रात गुजारना और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।
ब्रिटिश सेना के पूर्व मेजर केविन प्राइस का दावा है कि यूक्रेन में पारा गिरने के साथ रशियन सेना के टैंक 40 टन के फ्रीजर से ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे।
उन्होंने दावा किया कि रशियन सैनिक आर्कटिक शैली के युद्ध के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। इस कारण उनका मनोबल और ज्यादा टूटेगा। प्राइस का मानना है कि रशियन सैनिकों ने मार्च में इतने कम तापमान का सामना करने की उम्मीद नहीं की थी।
उल्लेखनीय है कि आर्कटिक क्षेत्र में विशाल बर्फ से ढका एक महासागर है। यहां का सबसे गर्म महीना जुलाई का होता है। जुलाई में औसतन तापमान 10 डिग्री सेल्सियस होता है।
बाल्टिक सिक्योरिटी फाउंडेशन के वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ग्लेन ग्रांट का कहना है कि यूक्रेन में मौसम बदलने के कारण रूसी सेना के टैंक अब सिर्फ फ्रीजर बन गए हैं।
रात में अगर रूसी सैनिक अपने टैंकों के इंजन चलाकर नहीं रखेंगे तो उनके लिए जीना मुश्किल हो जाएगा। ईंधन की आपूर्ति बाधित होने से इन सैनिकों के लिए लगातार इंजन को चलाकर रखना मुमकिन नहीं होगा।
24 घंटे लगातार इंजन चलाने के कारण टैंक खराब भी हो सकते हैं। ऐसे में पूरे काफिले को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।