नई दिल्ली: चीन के साथ हुए मौजूदा समझौते की बुनियाद दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 12 अक्टूबर को हुई 7वें दौर की बैठक में पड़ी थी।
इसी बैठक में मुख्य रूप से मास्को में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के साथ हुई बैठक में तय किये पांच सूत्री बिन्दुओं पर फोकस करके चीन और भारत ने एक दूसरे को टॉप सीक्रेट ‘रोडमैप’ सौंपे थे।
इसी रोडमैप पर 8वें और 9वें दौर की सैन्य वार्ताओं में चर्चा हुई और 9वें दौर की बैठक में 9 माह से चले आ रहे गतिरोध को सुलझाने का रास्ता निकला।
सूत्रों के मुताबिक चीन के साथ भारत का अंतिम मौखिक समझौता 24 जनवरी को हुआ था। भारत यह समझौता लिखित रूप में करके उच्च अधिकारियों की पुष्टि के बाद लागू करना चाहता था।
इस बीच गणतंत्र दिवस समारोह और फिर इसके बाद बेंगलुरु में एयरो इंडिया शो (3 से 5 फरवरी के बीच) की वजह से भारतीय सैन्य अधिकारियों की व्यस्तता रही।
भारत ने 8 फरवरी को चीन के साथ हुए लिखित समझौते को आगे बढ़ाया। चीन ने 9 फरवरी को एक लिखित दस्तावेज वापस भेजा और 10 फरवरी की सुबह इस पर हस्ताक्षर किए गए।
इसी दिन से चीन ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी तट से पीछे हटना शुरू कर दिया, जिसकी जानकारी खुद चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी करके दी।
11 फरवरी की शाम तक 200 से अधिक चीनी टैंक रुतोग सैन्य अड्डे पर वापस पहुंच गए थे, जो मोल्डो से लगभग 90-100 किमी दूर था।
इस बीच भारत ने भी अपने टैंकों को लोमा के पास वापस खींच लिया, जो न्योमा के पास एक छोटा सैन्य अड्डा था।
सूत्रों का कहना है कि सातवें दौर की वार्ता में ही चीन फिंगर-8 के पूर्व में अपनी पुरानी पोस्ट सिरिजाप पर वापस आने के लिए तैयार हो गया था लेकिन महीने में कम से कम एक बार फिंगर-5 तक गश्त करने की शर्त रखी थी जो भारत को मंजूर नहीं थी।
भारत ने इसके बाद आठवें और नौवें दौर की बैठक में भारत ने फिंगर-3 और फिंगर-8 के बीच नो पेट्रोलिंग ज़ोन बनाने के लिए दबाव डाला।
भारत के लिए यह समझौता दो कारणों से स्वीकार्य था, जिसमें पहली वजह यह थी कि चीन से मई, 2020 में 3 और 8 के बीच कब्जाए गए क्षेत्र को खाली कराना था।
दूसरे, भारत के गश्ती दल मई से पहले दो महीनों में एक बार फिंगर-8 तक जाते थे लेकिन गतिरोध शुरू होने के बाद से यह प्रक्रिया बंद थी।
इसलिए भारत फिंगर-8 तक ही चीन को सीमित करके मई, 2020 से पूर्व की स्थिति बहाल करना चाहता था।
चूंकि चीन को पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे की ऊंचाई वाली रणनीतिक पहाड़ियों पर भारत सैनिकों की तैनाती सबसे ज्यादा अखर रही थी, इसलिए सैन्य वार्ताओं में चीन की तरफ से हर बार यह मसला उठाया गया।
इस पर भारत के अधिकारियों ने चीन की बात यह कहकर सिरे से ख़ारिज कर दी कि ये पहाड़ियां भारतीय क्षेत्र में ही हैं, भारत ने एलएसी पार करके किसी पहाड़ी को अपने नियंत्रण में नहीं लिया है।
भारत ने वास्तव में 29-30 अगस्त को चुशुल उप-क्षेत्र में गुरुंग हिल, मगर हिल, मुखपारी, रेजांग ला और रेचिन ला की चोटियों पर सैनिकों को तैनात करके चीनियों को आश्चर्यचकित कर दिया था।
इसके बाद चीन ने इन चोटियों के सामने अपने मुख्य युद्धक टैंक टी-96 तैनात कर दिए।
टैंकों की इस आमने-सामने की तैनाती से भारत और चीन के सैनिकों के बीच बमुश्किल 100 फीट दूरी रह गई थी।
एक-दूसरे के फायरिंग रेंज में यह ऐसी स्थिति नहीं थी, जिसे दोनों ओर से अनिश्चित काल तक कायम रखा जा सकता था, इसलिए टकराव रोकने के लिए भारत-चीन को दक्षिण क्षेत्र से हथियार पीछे करने के लिए राजी होना पड़ा।
साथ ही भारत ने शर्त रख दी कि जब चीनी सेना उत्तरी किनारे के फिंगर-8 पर यानी अपनी पुरानी पोस्ट सिरिजाप पर पहुंच जायेगा, तब भारत 17 हजार फीट ऊंचाई वाली पहाड़ियों से अपने टैंक हटाएगा लेकिन सैनिक तैनात रहेंगे।
अब तय किया गया है कि अप्रैल से पहले की स्थिति बहाली करने के लिए भारत अपने टैंक चुशुल में वापस ले आएगा।
यह स्थान रेजांग ला हाइट्स से 20 किमी. से भी कम है और यहीं से नए स्थापित सेंसर और निगरानी प्लेटफॉर्म से किसी भी चीनी दुस्साहस पर नजर रहेगी।