गुमला: जिले के रायडीह प्रखंड के करंजकुर गांव में गुरुवार को गोरक्षा विकास समिति के तत्वावधान में कलश यात्रा व चौबीस घंटे का अखंड हरिकीर्तन के साथ दो दिवसीय गोपाष्टमी पूजनोत्सव सह मेला का शुभारंभ हुआ।
बॉबीडेरा स्थित पालामाड़ा नदी से महिलाओं का ज्यादा संकल्प के साथ कलश में जल उठाया और पंक्तिबद्ध होकर श्री राम जय राम जय जय राम, गौ माता की जय , रामरेखा बाबा की जय ,हिन्दू सनातन धर्म की जय ,भारत माता की जय, जय जय सियाराम के जयघोष करते हुए डेढ़ किमी दूरी तय करके शिव मंदिर पहुंचे ।
जहां भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया गया । अपराह्न एक बजे से अखंड हरिकीर्तन प्रारम्भ हुआ । भक्तों के बीच महाप्रसाद खिचड़ी का वितरण हुआ।
इस मौके पर दिगम्बर मिश्रा, शंकर पांडेय, बालमुकुंद सिंह, सच्चिदानंद पांडा, महाप्रभु निषाद, वृन्दा कुमार सिंह, जगतपाल राम,भूपाल राम, संतु सिंह, बैजनाथ मिश्रा, पुनीत कुमार लाल ,संजय कुमार सिंह,,रितेश कुमार,प्रेम प्रसाद,राकेश कुमार, झा,विनोद कुमार गुप्ता,सुमित प्रसाद, श्याम कुमार सिंह, हिमांशु गुप्ता आदि उपस्थित थे।
गौ पूजा से घर में आती है सुख-समृद्धि
पुरोहित दिगम्बर मिश्रा ने कहा कि कार्तिक माह में सूर्योदय के पूर्व नदी में स्नान कर पूजा अर्चना करने से पुण्य मिलता है। गौ माता की पूजा से 64 करोड़ देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।जिससे घर परिवार मव सुख समृद्धि आती है।
सचिदानंद पांडा ने ब्रम्हलीन रामरेखा बाबा के द्वारा हिन्दू धर्म की रक्षा और उन्हें जागृत करने में किये गए उल्लेखनीय कार्यों से अवगत कराया।
साथ ही देवताओं और राक्षसों द्वारा किये गए समुद्र मंथन से निकली कामधेनु गाय की कथा का लोगों के बीच श्रवण कराया।
52 वर्षों से लग रहा है गोपाष्टमी मेला
इस संबंध में आयोजन समिति के अध्यक्ष युगल किशोर पाण्डे उर्फ शंकर पांडेय और सचिव बालमुकुंद सिंह ने बताया कि ब्रह्मलीन रामरेखा बाबा प्रपन्ना जी महाराज के द्वारा करंजकुर गाँव 1969 में हिन्दू धर्म रक्षा उप केंद्र की नींव रखी गई थी।
और बाबा की प्रेरणा से इसी वर्ष से गाँव के धर्म प्रेमी दिगम्बर मिश्रा, स्व शम्भू सिंह स्व,फुदनाथ सिंह ,स्व देवनंदन सिंह, स्व दुबराज सिंह, स्व जतरू सिंह, स्व गोवर्धन सिंह, स्व युगल किशोर राम,स्व पदुमन सिंह,स्व भैरव सिंह के द्वारा गोपाष्टमी पूजनोत्सव सह मेला की शुरुआत की गई।
इस वर्ष 53 वर्षगांठ मना रहे हैं। संस्थापक सदस्यों में एकमात्र दिगम्बर मिश्रा जीवित हैं। शेष लोग मेला रूपी पौधा को वट वृक्ष में तब्दील करके स्वर्ग सिधार गए हैं। लेकिन उनका कारवां चलता ही जा रहा है।