UCC in Uttrakhand: उत्तराखंड विधानसभा (Uttarakhand Assembly) में समान नागरिक संहिता विधेयक (UCC) बुधवार को पारित हो गया है। इसके अलावा उत्तराखंड राज्य आंदोलन (Uttarakhand State Movement) के चिह्नित आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक (Reservation Bill) भी पारित हुआ।
राज्य सरकार के इस महत्वपूर्ण कदम के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां UCC को लागू करने की दिशा में ठोस पहल की गई है। इसी के साथ सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने मंगलवार को विधानसभा के पटल पर समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) विधेयक प्रस्तुत किया था।
मंगलवार और बुधवार को चर्चा पूरी होने के बाद बुधवार सायं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने समान नागरिक संहिता, उत्तराखण्ड-2024 विधेयक को सदन से पारित करने का अनुरोध किया। इसके बाद पीठ ने बहुमत के आधार पर इस महत्वपूर्ण विधेयक को पारित घोषित कर दिया।
संसदीय कार्यमंत्री Dr. Premchand Gupta ने उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के चिन्हित आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक-2023 प्रवर समिति द्वारा यथा संशोधित पर विचार करने के लिए प्रस्ताव को रखा। इसके बाद राजकीय सेवा में आरक्षण के इस विधेयक को पारित कर दिया गया।
हालांकि, विपक्ष UCC विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने की मांग कर रहा था। इसके लिए नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या ने विधायकों के हस्ताक्षरित पत्र विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा है। विधानसभा से पारित इस विधेयक को अनुमोदन के लिए राज्यपाल (Governor) को भेजा जाएगा। राज्यपाल इस कानून को लागू करने लिए राष्ट्रपति के भेज सकते हैं।
इस 202 पेजों के समान नागरिक संहिता विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। विधेयक चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (Live-in Relationship) और विविध में विभाजित किया गया है। विधेयक में 392 धाराएं हैं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 है।
समान नागरिक संहिता में विवाह की धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाज, खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर कोई असर नहीं है। हर धर्म में तलाक के लिए एक ही कानून, सख्त बनाए गए नियम, बगैर अधिकृत तलाक के कोई दूसरी शादी नहीं कर पाएगा। Live in Relationship Declaration जरूरी, पंजीकरण न कराने पर 6 माह की सजा, लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में अधिकार मिलेगा।
विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। विवाह के पक्षकार निषेध रिश्तेदारी की डिग्रियों के भीतर न आते हों। इसमें सगे रिश्तेदारों से संबंध निषेध किए गए हैं।
यदि इन डिग्रियों के भीतर होते हों तो दोनों पक्षों में से किसी एक की रूढि़ या प्रथा उन दोनों के मध्य विवाह को अनुमन्य करती हो, लेकिन ये रूढि़ या प्रथा लोक नीति व नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम तीन माह तक का कारावास और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना होगा।
विधेयक के दूसरे खंड में उत्तराधिकार के सामान्य नियम और तरीकों को विधेयक में स्पष्ट किया गया है। इसमें संपत्ति में सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवित बच्चे, पुत्र अथवा पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे। यदि कोई व्यक्ति अपना कोई इच्छापत्र (वसीयत) नहीं बनाता है और उसकी कोई संतान अथवा पत्नी नहीं है तो वहां उत्तराधिकार के लिए रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी जाएगी। विधेयक में उत्तराधिकार के संबंध में व्यापक प्रावधान किए गए हैं। इसमें कुल 328 धाराएं रखी गई हैं।
विधेयक का तीसरा खंड सहवासी (लिव इन रिलेशनशिप) पर केंद्रित किया गया है। इसमें लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा।
मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन और प्रेरणा से हमने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता से राज्य में समान नागरिक संहिता कानून लाने का जो ”संकल्प” प्रकट किया था, उसे आज हम पूरा करने जा रहे हैं।
हमारी सरकार ने पूरी जिम्मेदारी के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेते हुए समान नागरिक संहिता का विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया है। देवभूमि के लिए वह ऐतिहासिक क्षण निकट है, जब उत्तराखंड प्रधानमंत्री मोदी के विजन “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति गठित-
धामी ने अपनी सरकार के गठन के तुरंत बाद ही पहली कैबिनेट की बैठक में ही समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठित करने का निर्णय लिया था और 27 मई 2022 को उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति गठित की गई।
समिति में सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल एवं समाजसेवी मनु गौड़ को सम्मिलित किया गया।
समिति दो उप समितियों का गठन भी किया गया, जिसमें से एक उपसमिति का कार्य “संहिता“ का प्रारूप तैयार करने का था। दूसरी उपसमिति का कार्य प्रदेश के निवासियों से सुझाव आमंत्रित करने के साथ ही संवाद स्थापित करना था।
समिति देश के प्रथम गांव माणा से जनसंवाद कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए प्रदेश के सभी जनपदों में सभी वर्ग के लोगों से सुझाव प्राप्त किये गये। इस दौरान कुल 43 जनसंवाद कार्यक्रम किये गये और प्रवासी उत्तराखंडी भाई-बहनों के साथ 14 जून 2023 को नई दिल्ली में चर्चा के साथ ही संवाद कार्यक्रम पूर्ण किया गया।
समिति 02 लाख 33 हजार लिए सुझाव-
समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिये समाज के हर वर्ग से सुझाव आमंत्रित करने के लिये 08 सितम्बर 2022 को एक Web Portal Launch किया था।
समिति को विभिन्न माध्यमों से 2 लाख बत्तीस हजार नौ सौ इक्सठ (2,32,961) सुझाव प्राप्त हुए। जो प्रदेश के लगभग 10 प्रतिशत परिवारों के बराबर है। लगभग 10 हजार लोगों से संवाद एवं प्राप्त लगभग 02 लाख 33 हजार सुझावों का अध्ययन लिए समिति की 72 बैठकें आहूत की गईं।
समिति का कार्यकाल चार बार बढ़ाया गया-
समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए प्रदेश सरकार ने 22 मई को विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति का कार्यकाल छह माह रखा गया। कार्य की अधिकता को देखते हुए सरकार ने चार बार इसका कार्यकाल बढ़ाया।
पहली बार कार्यकाल 28 नवंबर 2022 को छह माह के लिए और इसके बाद दूसरा कार्यकाल नौ मई 2023 को चार माह के लिए और तीसरा कार्यकाल 22 सितंबर को से चार माह के लिए बढ़ाया गया। चौथा कार्यकाल पिछले महीने 25 जनवरी को 15 दिन के लिए बढ़ाया गया। अब समिति का कार्यकाल 11 फरवरी को समाप्त हो रहा है।