नई दिल्ली : यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने अपनी राय तैयार की है।
आज राय लॉ कमीशन (Law commission) को भेजी जाएगी। राय में कहा गया है कि यूनिफार्म सिविल कोड मजहब से टकराता है।
ऐसे में लॉ कमीशन को चाहिए कि वो सभी धर्मों के जिम्मेदार लोगों से बुलाकर बात करे और समन्वय स्थापित करे।
मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में जमीयत उलेमा ए हिंद आज अपनी राय भेजेगा, जिसके मुताबिक- कोई भी ऐसा कानून जो शरीयत के खिलाफ हो, मुसलमान उसे मंजूर नहीं करेंगे।
मुसलमान (Muslim) सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत के खिलाफ़ नहीं जा सकता। यूनिफॉर्म सिविल कोड देश की एकता के लिए खतरा है।
संविधान मजहबी आजादी का देता है पूरा मौका
जमीयत उलेमा हिंद ने अपने तैयार की गई राय में कहा कि Uniform civil code संविधान (Constitution) में मिली धर्म के पालन की आजादी के खिलाफ है, क्योंकि यह संविधान में नागरिकों को धारा 25 में दी गई धार्मिक आजादी और बुनियादी अधिकारों को छीनता है।
जमीयत की तरफ से कहा गया कि हमारा पर्सनल लॉ (Personal law) कुरान और सुन्नत से बना है, उसमें कयामत तक कोई भी संशोधन नहीं हो सकता। हमें संविधान मजहबी आजादी का पूरा मौका देता है।
प्रधानमंत्री के बयान के बाद लॉ कमीशन का क्या मतलब रह जाता है
इससे पहले मौलाना मदनी ने मुसलमानों से UCC के खिलाफ सड़क पर न उतरने की अपील की थी। NDTV से एक्सक्लूसिव बातचीत में जमियत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा था कि प्रधानमंत्री के बयान के बाद Law commission का क्या मतलब रह जाता है।
हमें Law commission पर यकीन नहीं है। हम तो हमेशा कहते हैं। मुसलमान सड़कों पर न उतरें, हम जो करेंगे कानून के दायरे में रहकर करेंगे।”
हम और क्या खो सकते हैं?
अगर समान नागरिक संहिता वास्तव में लागू हो जाती है, तो मुसलमान क्या रास्ता अपनाएंगे? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हम वैसे भी क्या कर सकते हैं?
हम और क्या खो सकते हैं?” अयोध्या में कार सेवकों द्वारा गिराई गई बाबरी मस्जिद का जिक्र करते हुए मदनी ने कहा कि हमारी मस्जिद चली गई है।
हम क्या कर सकते हैं? हम केवल अपने दैनिक जीवन में इबादद को जीवित रख सकते हैं, अगर अल्लाह चाहेगा।”