नई दिल्ली: सोमवार को केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए केंद्रीय बजट 2021-22 की आलोचना करते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है।
यह बजट गरीबों, मध्यम वर्ग और किसानों को बर्बाद करने वाला है। बजट में सभी राष्ट्रीय संपत्तियों को एक के बाद एक कर बेचने की योजना बनाई गई है।
गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ाने की कोई योजना इसमें नहीं है, जिससे आत्मनिर्भर भारत की सही नींव पड़ सके।
स्वास्थ्य पर यह बोले
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि महामारी के दौरान एक बात जो स्पष्ट रूप से सामने आई, वह थी देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का पूरी तरह से चरमरा जाना।
केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि स्वास्थ्य बजट आवंटन में काफी वृद्धि करेगी, लेकिन केंद्रीय बजट में वृद्धि की बजाय भारत के हेल्थकेयर बजट को 10 प्रतिशत कम कर दिया गया है।
इससे पता चलता है कि कोरोना महामारी से कोई भी सबक नहीं लिया गया है। गंभीरता से विश्लेषण से पता चलता है कि 2021-22 में स्वास्थ्य बजट करीब 8 हजार करोड़ रुपए कम कर दिया गया है।
2020-21 में स्वास्थ्य बजट 82,445 करोड़ था, जिसे 2021-22 में घटाकर 74,602 करोड़ कर दिया गया है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि वित्तमंत्री की ओर से स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण के लिए बजट में 137 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा भ्रामक है और सरकार को लोगों की कोई परवाह नहीं है।
स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि दिखाने के लिए गैर-स्वास्थ्य योजनाओं जैसे स्वच्छ वायु कार्यक्रम, जल आपूर्ति कार्यक्रम आदि को शामिल कर दिया गया है।
शिक्षा के लिए यह कहा उप मुख्यमंत्री ने
उप मुख्यमंत्री कहा कि स्कूल और कॉलेज करीब एक साल से बंद है, जिससे छात्रों को कुछ नया सीखने की प्रक्रिया को गंभीर नुकसान हुआ है।
कोई भी सरकार जो बच्चों की परवाह करती है, उसे इस नुकसान को देखते हुए शिक्षा में अतिरिक्त बजट का आवंटन करना चाहिए था, लेकिन हम क्या देख रहे हैं कि शिक्षा मंत्रालय के बजट में करीब 6 हजार करोड़ रुपये की कमी कर दी गई है। 2020-21 में शिक्षा बजट 99,312 करोड़ के मुकाबले 2021-22 में घटकर 93,224 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
आगे उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6 फीसदी आवंटन का वादा किया गया है।
केंद्रीय बजट में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6 फीसदी शिक्षा को आवंटित किया है। शिक्षा बजट को 6 हजार करोड़ रुपए कम करने से पता चलता है कि भाजपा का आत्म निर्भर भारत बनाने की बात महज एक जुमला है।
बढ़ती महंगाई के उपाय नहीं और आयकर छूट की उम्मीद धाराशाई
बढ़ती महंगाई और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की दिशा में केंद्र की निष्क्रियता की आलोचना करते हुए उप मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ईधन की बढ़ती कीमतों के कारण खाद्य पदार्थों में उच्च मुद्रास्फीति हो रही है।
सिर्फ पिछले साल पेट्रोल की कीमतें 75 रुपए से बढ़कर 86 रुपए प्रति लीटर हो गईं। पेट्रोल की कीमतों में केवल एक साल में 11 रुपए की बढ़ोतरी हुई है।
जबकि डीजल की कीमतें 68 रुपए से बढ़कर 77 रुपए हो गई और डीजल की कीमतों में एक साल के दौरान 9 रुपए की वृद्धि दर्ज की गई है। इसके बावजूद पेट्रोल पर 2.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 4 रुपए प्रति लीटर सेस लगाकर केंद्र सरकार ने बता दिया है कि वह मध्यम वर्ग या अर्थव्यवस्था की परवाह नहीं करती है।
कोरोना से आय पर पड़े असर के सदमें से उबर रहा मध्यम वर्ग, इस बजट में आयकर छूट की उम्मीद कर रहा था। इस दिशा में भी केंद्र सरकार की ओर से बदलाव की कोई घोषणा नहीं की गई।
गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के लिए इस बजट में कुछ भी नहीं
केंद्रीय बजट में गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के लिए कुछ भी नहीं होने पर चिंता जाहिर करते हुए उप मुख्यमंत्री ने कहा कि यह माना जाता है कि सीधे गरीबों के खर्च पर ध्यान केंद्रित कर, मांग को बढ़ावा देना अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के लिए इस बजट में कुछ भी नहीं है।
गरीबों और बेरोजगारों की प्रमुख योजनाओं में कमी की गई है। सामाजिक कल्याण योजनाओं में 5 हजार करोड़ रुपए और कि पीएम किसान योजना आवंटन में 10 हजार करोड़ रुपए की कमी की गई है।