झारखंड

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- पीएफआई सदस्य कप्पन पत्रकारिता की आड़ लेता रहा

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सिद्दीकी कप्पन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का कार्यालय सचिव है और केरल के एक अखबार तेजस का पहचानपत्र दिखाकर पत्रकारिता की आड़ में काम कर रहा था, जो 2018 में बंद हो चुका है।

सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि यह जांच के दौरान पता चला है कि वह, अन्य पीएफआई कार्यकर्ताओं और उनके छात्र विंग के नेताओं के साथ जाति विभाजन और कानून और व्यवस्था बिगाड़ने के लिए एक निर्धारित डिजाइन के साथ पत्रकारिता की आड़ में हाथरस जा रहे था।

यूपी सरकार ने कहा कि पुलिस ने कप्पन के भाई और उसके मामा को उसकी गिरफ्तारी की सूचना दे दी। हलफनामे में कहा गया कि अभियुक्त के परिवार के किसी सदस्य ने आरोपी से मिलने के लिए जेल अधिकारियों से संपर्क नहीं किया है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि आज तक किसी वकील ने कप्पन द्वारा हस्ताक्षरित वकालतनामा के साथ जेल अधिकारियों से संपर्क नहीं किया है, और न्यायिक हिरासत के दौरान उसने तीन मौकों पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत भी की थी।

यूपी सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में केरल वर्किं ग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) द्वारा दायर याचिका के मद्देनजर प्रतिक्रिया दी गई, जिसमें दावा किया गया था कि कप्पन को अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है।

केयूडब्ल्यूजे का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल ने सबसे पहले मजिस्ट्रेट के पास जाकर कप्पन से मिलने की अनुमति मांगी, जिन्होंने उन्हें जेल अधिकारियों के पास जाने के लिए कहा। बाद में, जब वे जेल अधिकारियों के पास गए तो उन्होंने उन्हें मजिस्ट्रेट के पास जाने के लिए कहा। सिब्बल ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा, मजिस्ट्रेट ने हमें सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए कहा।

केयूडब्ल्यूजे ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी जिसमें कप्पन की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी और उसने अनुच्छेद 14, 19 और 21 के उल्लंघन का हवाला दिया था। दलील में दावा किया गया कि 5 अक्टूबर को कप्पन को हाथरस के पास टोल प्लाजा से गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस में 19 वर्षीय लड़की के साथ कथित दुष्कर्म और मौत की रिपोर्टिग के लिए जा रहा था।

वकील विल्स मैथ्यूज के माध्यम से दायर याचिका में गिरफ्तारी को अवैध और असंवैधानिक बताया गया। पत्रकार पर आतंकवाद-रोधी कानून यूएपीए या गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।

Back to top button
x

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker