पटना: बिहार उपचुनाव में शनिवार को तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का फैसला ईवीएम में कैद हो गया। इन दोनों सीटों पर मतों की गिनती दो नवंबर को होनी है।
मतदान संपन्न होने के बाद भले ही सभी राजनीतिक पार्टियां जीत का दावा कर रही हैं, लेकिन विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के चुनाव परिणाम के बाद खेला होबे तथा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद का परिणाम के बाद सत्ता पक्ष में भगदड़ मचेगी जैसे बयानों को लेकर चर्चा तेज है।
कहा जा रहा है कि चुनाव परिणाम का तत्काल असर तो बिहार की सियासत में नहीं पड़ने वाला लेकिन भविष्य को लेकर आशंका भी बनी हुई है।
राजद के नेताओं के बयानों पर गौर करें तो लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के बयान का साफ मतलब निकाला जा रहा है कि अगर दोनों सीटों पर राजद की जीत होती है तो सरकार मुश्किल में आ सकती है। देखा भी जाए तो सत्ता और विपक्ष में बहुत ज्यादा सीटों का अंतर भी नहीं है।
पिछले साल हुए बिहार विधनासभा चुनाव में राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल महागठबंधन के तहत चुनाव मैदान में उतरी थी जबकि जदयू, भाजपा, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) राजग में शामिल थी।
विधानसभा के गणित की बात करें तो 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में बहुमत के आंकडे के लिए 122 सीटों की जरूरत है। फिलहाल राजग के पास 126 विधायकों का समर्थन है जबकि विपक्षी दलों के महागठबंधन में 110 विधायक हैं। राजग के पास हम और वीआईपी के चार-चार विधायकों सहित एक निर्दलीय विधायक का समर्थन है।
माना जा रहा है कि इस उपचुनाव में कांग्रेस भले ही राजद से अलग होकर चुनाव लड रही हो, लेकिन जब सरकार बनाने की बात आएगी तो वह राजद के साथ होगी।
लालू प्रसाद की पार्टी राजद अगर इन दोनों सीटों पर जीत हासिल कर जाती है तो महागठबंधन में विधायकों की संख्या 112 हो जाएगी। सरकार बनाने के लिए 122 विधायक चाहिए। एआईएमआईएम के पास 5 विधायक हैं, जबकि हम और वीआईपी के पास चार-चार विधायक हैं।
चारा घोटाले में जमानत मिलने के बाद लालू प्रसाद इस उपचुनाव को लेकर पटना पहुंचे हैें और लगातार लोगों से मिल भी रहे हैं। गौरतलब है कि मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम महागठबंधन में रह चुकी है।
इधर, जदयू के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री नीरज कुमार कहते हैं कि पिछले चुनाव में ये दोनों सीटें जदयू की थी और इस उपचुनाव में भी जनता का आशीर्वाद जदयू को मिलेगा। किसी को भी सपना देखने से नहीं रोका जा सकता। बिहार के लोग 15 साल पहले के बिहार में कभी नहीं लौटना चाहते।
वैसे, इतना तय माना जा रहा है कि जदयू अगर दोनों सीटें जीत जाती हैं तो राजग की ताकत और बढ जाएगी। जदयू अगर दोनों सीटों पर चुनाव हार जाती है तो भले ही सरकार नहीं गिरे लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर मनोवैज्ञानिक दबाव तो बढ ही जाएगा। हालांकि राजद तब भी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी ही रहेगी।