क्या राज्यपाल अब विधानसभा में पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए नहीं रोक सकेंगे?

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, कि यह सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है। यह फैसला न केवल संवैधानिक संतुलन को स्पष्ट करता है, बल्कि संवैधानिक प्रमुख और चुनी हुई सरकार के बीच जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व की रेखा भी खींचता है।

Digital News
5 Min Read

indefinitely halt the bills passed in the Assembly? सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंगलवार को दिए गए ऐतिहासिक फैसले के बाद सवाल किए जा रहे हैं कि क्या राज्यपाल अब विधानसभा में पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं सकेंगे? वैसे कोर्ट ने आपने आदेश में स्पष्ट किया है कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। कोर्ट का यह निर्णय तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आया है, जिससे न केवल तमिलनाडु, बल्कि देश के अन्य राज्यों की चुनी हुई सरकारों को बड़ी राहत मिलती दिख रही है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की डबल बेंच ने तमिलनाडु सरकार बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले की सुनवाई करते हुए उक्त फैसला दिया है। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि राज्यपाल के पास राज्य विधानसभा की तरफ से भेजे गए विधेयकों पर वीटो का अधिकार नहीं है। वे विधानसभा द्वारा पारित किसी बिल को अनिश्चितकाल के लिए रोक नहीं सकते हैं।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है। उन्हें तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर अनिवार्य रूप से कार्य करना होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विधानसभा द्वारा विधेयक को पुन: पारित किए जाने के बाद उसे पेश किए जाने पर राज्यपाल को एक माह की अवधि में मंजूरी देनी होगी। इसी के साथ कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पास किए गए 10 लंबित विधेयकों को राज्यपाल द्वारा मंजूर मान लिया। इसी के साथ कोर्ट ने भविष्य के सभी विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समय सीमा भी निर्धारित कर दी है।

यहां बताते चलें कि तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच काफी लंबे समय से विवाद चला आ रहा था। राज्यपाल विधानसभा द्वारा पास विधेयकों को मंजूरी देने में आनाकानी कर रहे थे। हद यह थी कि कुछ बिल तो ऐसे थे जो साल 2020 से लंबित थे।

इस कारण सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई थी। ऐसे में आरोप यहां तक लगे कि राज्यपाल जानबूझकर विधायी प्रक्रिया को रोकने की कोशिश करते हैं। तमिलनाडु ही नहीं बल्कि देश के उन राज्यों में भी इस तरह के विवाद देखने को मिले जहां केंद्र समर्थित सरकारें नहीं थीं। दिल्ली और पुंड्डुचेरी में एलजी और राज्य सरकार में मतभेद से लेकर तेलंगाना, पंजाब, छत्तीसगढ़, हरियाणा, बंगाल और केरल जैसे राज्यों में भी राज्यपालों के साथ ऐसे ही विवाद देखने को मिले।

- Advertisement -
sikkim-ad

राज्यपाल की शक्तियां

संविधान में राज्यपाल की शक्तियों का जहां तक सवाल है तो बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 153 में प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल का प्रावधान रखा गया है। अनुच्छेद 154 के तहत राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल के पास होती है, जिनका इस्तेमाल वास्तव में मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है। संविधान में उनकी भूमिका और शक्ति सीमित ही रखी गई है। यही वजह है कि अनुच्छेद 163(1) के मुताबिक राज्यपाल को अपने मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होता है।

क्या है अनुच्छेद 200

संविधान के अनुच्छेद 200 में बताया गया है कि विधानसभा द्वारा पारित सभी विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी चाहिए होती है। इसके तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं: प्रथमत: विधेयक को मंजूरी देना, द्वितीय मंजूरी रोकना, तृतीय विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना और चतुर्थ विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेजना। इसमें समयसीमा का उल्लेख नहीं किया गया, जिसे लेकर विभिन्न आयोगों द्वारा राज्यपाल की विधेयकों पर फैसला लेने की समय सीमा तय करने की सिफारिश की गई थी।

स्टालिन बोले कोर्ट का फैसला सभी राज्य सरकारों की जीत

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, कि यह सिर्फ तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है। यह फैसला न केवल संवैधानिक संतुलन को स्पष्ट करता है, बल्कि संवैधानिक प्रमुख और चुनी हुई सरकार के बीच जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व की रेखा भी खींचता है।

Share This Article