Live in Relationship Without Divorce: भारत में लिव-इन रिलेशनशिप का ट्रेंड (Live-in Relationship Trend) चरम पर है।
शादी के एक साल बाद ही एक महिला अपने पति से अलग हो गई और अपने Boyfriend के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगी।
इसी दौरान वह प्रेग्नेंट (Pregnant) भी हो गई। खास बात ये कि उसने अपने पति से तलाक भी नहीं लिया था यानी उसकी शादी अस्तित्व में थी, वह कानूनन शादीशुदा थी जो पति से अलग अपने पुरुष मित्र के साथ रह रही थी। अस्पताल में उसने बच्चे को जन्म दिया।
बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र (Birth certificate) में पिता के नाम के तौर पर उसके पति का नाम दर्ज हो गया, जबकि बायोलॉजिकल पिता उसका लिव-इन पार्टनर है।
बाद में हो गया महिला का तलाक
बाद में महिला का तलाक हो गया और अब वह बर्थ सर्टिफिकेट पर बच्चे के पिता के तौर पर अपने लिव-इन पार्टनर (Live-in Partner) का नाम डलवाना चाहती है। मामला नवी मुंबई का है।
नवी मुंबई महानगर पालिका ने पिता का नाम बदलने से इनकार कर दिया। वाशी मैजिस्ट्रेट कोर्ट (Magistrate Court) में भी महिला की याचिका खारिज हो गई तो वह मुंबई हाई कोर्ट पहुंची।
पिछले महीने इस मामले में सुनवाई हुई। अब पूर्व पति की जगह बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में लिव-इन पार्टनर का नाम डलवाने के लिए वह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही है।
कानूनी स्थिति लिव-इन रिलेशनशिप की
किसी भी पुरुष या महिला के लिए बिना शादी किए किसी के साथ रोमांटिक रिलेशन (Romantic Relationship) में रहना कानून के हिसाब से गलत नहीं है। वो दोनों एक छत के नीचे, बिल्कुल किसी पति-पत्नी की तरह रिश्ता रख सकते हैं, ये गैरकानूनी नहीं है।
चाहे वह शादीशुदा हों, तलाकशुदा हों, दोनों पार्टनर पहले से शादीशुदा हों या अविवाहित हों। वह लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं तो ये बिल्कुल गैरकानूनी नहीं है, अपराध नहीं है।
कानून के हिसाब से दो बालिग अपनी मर्जी से SEX संबंध बना सकते हैं, लिव-इन रिलेशन में भी रह सकते हैं। आलोचक नैतिकता की दुहाई देकर इसका विरोध करते हैं लेकिन कानून के हिसाब से लिव-इन रिलेशनशिप में कुछ भी गलत या गैरकानूनी या आपराधिक नहीं है।
ये तो रही लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति की बात। लेकिन Live-in Relationship को लेकर देश में स्पष्ट कानून नहीं है। इस तरह की रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
उन्हें कानून से समुचित संरक्षण नहीं मिलता क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े मसलों से निपटने के लिए अलग से कोई कानून ही नहीं है।
हालांकि, अदालतें समय-समय पर इससे जुड़े मसलों पर अहम फैसले सुनाती रहती हैं जिससे लिव-इन पार्टनर्स को कानूनी सुरक्षा मिलती है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल (Couple) को शादीशुदा कपल की तरह कानूनी अधिकार नहीं हैं।
लिव-इन पार्टनर्स इन अधिकार से रहेंगे वंचित
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े शादीशुदा जोड़ों के कई अधिकारों से वंचित रहते हैं। लिव-इन पार्टनर का एक दूसरे की संपत्ति में उनका अधिकार या उत्तराधिकार नहीं हो सकता, लेकिन शादी के मामले में ऐसा नहीं होता।
लिव-इन पार्टनर अगर अलग होते हैं तो वो मैंटिनेंस (Maintenance) यानी भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकते। हालांकि, लिव-इन रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को उसी तरह के कानूनी अधिकार हासिल हैं जो शादीशुदा कपल के बच्चे के होते हैं यानी उन्हें संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे सभी अधिकार मिलेंगे जो किसी शादीशुदा जोड़े के बच्चे को मिलते हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े तमाम पहलू
लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े तमाम पहलुओं, मसलों से निपटने के लिए भले ही कोई अलग से कानून नहीं हो लेकिन लिव-इन पार्टनर्स को कुछ मामलों में कानूनी संरक्षण हासिल है।
लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला अगर घरेलू हिंसा की शिकार होती है तो उसे डोमेस्टिक वाइलेंस (Domestic Violence) ऐक्ट, 2005 के तहत प्रोटेक्शन हासिल है।
इस कानून में डोमेस्टिक रिलेशनशि को इस तरह पारिभाषित किया गया है- दो व्यक्ति एकसाथ एक साझे घर में रहते हों जिनका रिश्ता शादी जैसा हो।
इसलिए लिव-इन में रहने वाली महिला घरेलू हिंसा की सूरत में उसी तरह इस कानून का सहारा ले सकती है जिस तरह कोई शादीशुदा महिला लेती है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने कई फैसलों में कह चुका है कि अगर कोई जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में लंबे समय से रह रहा है, तो विशेष परिस्थितियों में उन्हें पति और पत्नी के तौर पर माना जा सकता है।
अलग होने पर महिला मैंटिनेंस का भी दावा कर सकती है। इसके लिए शर्त ये है कि पार्टनर लंबे समय से लिव-इन में रह रहे हों, एक छत के नीचे रह रहे हों यानी साझा घर में।
घर की जिम्मेदारियों को संयुक्त रूप से उठा रहे हों, बैंक अकाउंट जॉइंट (Bank Account Joint) हो या जॉइंट नेम से प्रॉपर्टी खरीदे हों। इन परिस्थितियों में लिव-इन रिलेशन को शादी सरीखा माना जा सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप से अगर बच्चे हों तो ये इसे शादी जैसा मानने का मजबूत आधार हो सकता है।
लिव-इन रिलेशन पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसले
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इंद्र शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा केस में लिव-इन में रह रहीं महिलाओं को एक बड़ा कानूनी संरक्षण देते हुए फैसला सुनाया कि उनको भी प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वाइलेंस ऐक्ट, 2005 यानी घरेलू हिंसा कानून के तहत संरक्षण हासिल है।
कानून के सेक्शन 2 (f) में डोमेस्टिक रिलेशनशिप की परिभाषा दी गई है। लिव-इन रिलेशन भी उसके दायरे में आता है।
मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ललिता टोप्पो (Lalita Toppo) बनाम झारखंड राज्य मामले में कहा कि लिव-इन पार्टनर भी प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वाइलेंस ऐक्ट, 2005 के प्रावधानों के तहत मैंटिनेंस की मांग कर सकती हैं।