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हिंसा और लिंचिंग से निपटने के लिए जल्द बनेगा विशेष कानून, सुप्रीम कोर्ट ने दिया था सुझाव

गुवाहाटी/अगरतला: सख्त कानून की कमी, पुलिस की सुस्त कार्रवाई और सुनवाई में देरी के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंसा और लिंचिंग की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं।

2018 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र और राज्यों को भीड़ की हिंसा और लिंचिंग (Violence Linching) से निपटने के लिए विशेष कानून बनाने का सुझाव दिया था।

सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार (Central Government) अभी भी प्रस्तावित अधिनियम का मसौदा तैयार कर रही है, जबकि राज्यों को भी सुझाव का पालन करना बाकी है।

50 से अधिक लोगों की भीड़ को उकसाने और नेतृत्व करने का आरोप था

विशेषज्ञों (Specialist) , मनोचिकित्सकों , पुलिस के अधिकारियों और कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि सख्त कानून, एजेंसियों की सतर्कता और त्वरित कार्रवाई के अलावा जन जागरूकता (Awareness) से लिंचिंग की की घटनाएं रोकी जा सकती हैं।

हाल के वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (All Assam Students Union) के नेता अनिमेष भुइयां समेत अनेक लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई।

मेघालय में एक बड़े मामले में सितंबर में पश्चिम जयंतिया हिल्स जिले के शांगपुंग में एक दोषी के साथ जेल से भागे पांच विचाराधीन कैदियों में से चार की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या (Murder) कर दी थी।

पुलिस के अनुसार स्थानीय लोगों की भीड़, जिनमें ज्यादातर डंडों से लैस युवा थे, ने चारों को बुरी तरह से पीटा। इससे उनकी मौके पर ही मौत (Dead) हो गई।

इस बीच पिछले साल नवंबर में असम के जोरहाट में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेता अनिमेष भुइयां की पीट-पीट कर हत्या (Murder) करने के मामले में मुख्य आरोपियों सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

हालांकि मुख्य आरोपी नीरज दास, जो एक ड्रग पेडलर भी था, एक सड़क दुर्घटना (Road Accident) में रहस्यमय तरीके से मर गया, जब वह पुलिस से भागने की कोशिश कर रहा था।

दास पर 50 से अधिक लोगों की भीड़ को उकसाने और नेतृत्व करने का आरोप था। उन्होंने भुइयां को पीट कर मार डाला था और उनके सहयोगी प्रणय दत्ता और पत्रकार मृदुस्मंत बरुआ को घायल कर दिया था, जब उन्होंने दुर्घटना पीड़ित एक बुजुर्ग की सहायता करने की कोशिश की थी।

जब हमला हो रहा था तो कई लोग मूकदर्शक बने देख रहे थे और कुछ लोग मोबाइल फोन में वीडियो बना रहे थे।

त्रिपुरा में पिछले साल जून में खोवाई जिले में मवेशी चोरी करने के संदेह में तीन युवकों (Youth) की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। पीड़ितों में से दो को रस्सियों से बांधकर भीड़ ने पीटा, जिससे उनकी मौत (Dead) हो गई, जबकि तीसरे को पीछा करने के बाद पकड़ लिया गया और पीट-पीटकर मार डाला गया।

लिंचिंग और भीड़ की हिंसा के ज्यादातर मामलों में अभी तक किसी भी आरोपी (Accused) को सजा नहीं मिली है।

कभी-कभी मामला सांप्रदायिक मोड़ भी ले लेता है

बच्चा चोर के संदेह में 2018 के कार्बी आंगलोंग लिंचिंग में अभिजीत नाथ और नीलोत्पल दास को भी ग्रामीणों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। पीड़ितों को न्याय मिलना बाकी है।

असम के संसदीय कार्य, सूचना और जनसंपर्क मंत्री पीयूष हजारिका, जो राज्य सरकार के प्रवक्ता भी हैं, ने बताया कि राज्य विधानसभा में मॉब लिंचिंग (Mob Linching) और हिंसा के खिलाफ एक विधेयक पेश करने की योजना बना रहा है।

पिछले कई वर्षों से कई सामाजिक मुद्दों पर अध्ययन कर रही लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता नंदिता दत्ता ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जो लोग लिंचिंग में शामिल होते हैं, वे आर्थिक, घरेलू सहित अन्य परेशानियों के कारण गुस्से से भरे होते हैं।

कई पुरस्कार प्राप्त करने वाले दत्ता ने आईएएनएस को बताया, ज्यादातर लोग, विशेष रूप से जो कम कमाते हैं, उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बिना किसी कारण के गुस्सा व्यक्त किया। उन्होंने वास्तविक मामले को जाने बिना एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला।

उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में लोग संदिग्धों को पीटने के लिए कई किलोमीटर तक पीछा भी करते हैं। कभी-कभी मामला सांप्रदायिक मोड़ भी ले लेता है।

दत्ता ने कहा…

दत्ता ने कहा कि कई मामलों में अगर पुलिस समय पर घटनास्थल पर पहुंच जाती तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

असम के सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी समरेश बरुआ ने कहा कि सख्त कानून बनाने के अलावा पुलिस को भीड़ की हिंसा और लिंचिंग के खिलाफ उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

बरुआ ने INS को बताया कि भीड़ की हिंसा और लिंचिंग में शामिल लोगों के खिलाफ मुकदमा फास्ट ट्रैक विशेष अदालत में किया जाना चाहिए। इस तरह की हिंसा की हर घटना के बाद इस मुद्दे का गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए, ताकि अधिकारी इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए एक उचित योजना तैयार कर सकें।

भीड़ हिंसा और लिंचिंग के कुछ मामलों का अध्ययन करने वाले बरुआ ने कहा कि पूर्वाग्रह से ग्रसित कुछ लोग निर्दोष लोगों पर हमला (Attack) करते हैं क्योंकि उन्हें कानून का कोई डर नहीं है।

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