रांची : सावन में लोग Non Veg से परहेज करते हैं और हर सब्जियां भी आसमान छू रही हैं। ऐसे में झारखंड के प्रसिद्ध रुगड़ा (Rugda) के प्रति लोगों का रुझान बढ़ गया है।
यह स्वाद के साथ सेहत के लिए भी लाभकारी है। मानसून के दौरान सखुआ के जंगलों में मिलने वाला ‘शाकाहारी मटन’ रुगड़ा (‘Vegetarian Mutton Rugda) सावन के महीने में मांसाहारियों का पसंदीदा विकल्प होता है।
यहां के बाजारों में रुगड़ा मिलना शुरू हो गया है। शुरुआती दौर में इसकी कीमत काफी ज्यादा रहती है।
बरसात के दिनों में वायरल और फंगल इंफेक्शन तेजी से फैलते हैं। इससे सबसे ज्यादा नुकसान कमजोर इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों को होता है।
इस मौसम में खुखड़ी या रुगड़ा (Khukhi or Rugda) का इस्तेमाल इम्युनिटी बढ़ाने में किया जा सकता है। इसमें औषधीय गुणों की भरमार होती है। यह हृदय रोग, कैंसर, किडनी के रोग, डायबिटीज और खून की समस्या होने पर एक बेहतरीन औषधि मानी गयी है।
यही कारण है कि इस मौसम में रुगड़ा की कीमत 600 रुपये से 1000 रुपये प्रति किलो होने के बाद भी लोग इसका जमकर सेवन करते हैं। खुखड़ी की कीमत 400 से 500 रुपये प्रति केजी है।
ग्रामीणों के प्राकृतिक आजीविका का साधन है साधन
रुगड़ा को ग्रामीणों का प्राकृतिक आजीविका का साधन माना जाता है। इसे ज्यादातर सखुआ के जंगलों के आस पास बसे गांवों में पाया जाता है।
ग्रामीण द्वारा इसको ढूंढने और निकलने का प्रोसेस काफी मेहनत और मशक्कत भरा होता है। बारिश के बाद सखुआ के जंगलों में जमीन में कुछ कुछ भाग उठा सा नजर आता है , जिसे डंठल से खोदने पर रुगडा मिलता है, जिसके बाद इसकी काफी साफ-सफाई भी करनी पड़ती है।
रुगड़ा में कई तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। उच्च स्तर के प्रोटीन और Vitamin इसमें पाए जाते है।मसलन Vitamin B, Vitamin C, Vitamin B, कॉम्प्लेक्स, राइबोलेनिन, थाईमिन, Vitamin B12, फोलिक एसिड और लवण, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटाशियम तथा ताम्बा पाए जाते हैं। इसमें प्रोटीन ज्यादा और कैलोरी कम होती है, जिससे कारण ये काफी हेल्दी भी माना जाता है। यह सुपाच्य होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है।
हाई ब्लड प्रेशर और हाईपरटेंशन (High Blood Pressure and Hypertension) के रोगियों के लिए यह बहुत उपयुक्त माना जाता है। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह बहुत सहायक है। इसके अलावा मोटापा कम करने में भी इसका उपयोग किया जाता है।
यह आदिवासियों के भोजन में प्राचीन काल से सम्मिलित है। सामान्यतः यह दो प्रकार का होता है सफेद और काला, जिसमें काला रुगड़ा (Black Rugra) का टेस्ट कुछ अलग ही होता है और बारिश के सीजन के हिसाब से ये भी बढ़ता रहता है।
जैसे-जैसे बारिश का सीजन खत्म होने लगता है वैसे-वैसे ये भी बुढ़ा होने लगता है। इसकी मांग ज्यादातर वर्षा ऋतु (Rainy Season) के प्रारंभिक और मध्य काल में होती है।