रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी समाज की परंपरा और कला- संस्कृति को जीवंत, अक्षुण्ण और संरक्षित करने का लगातार प्रयास कर रही है।
प्राचीन काल से आज तक आदिवासी समाज का विश्लेषण किया जाए तो हम कह सकते हैं कि उनके आत्मविश्वास और दृढ संकल्प में कोई कमी नहीं आई है।
आज भी वह पहले की ही तरह अडिग है। यही वजह है कि सरना स्थल जैसे उत्सव स्थल हमें एक सूत्र में बांधने का काम करते हैं।
मुख्यमंत्री गुरुवार को सिरोमटोली सरना स्थल के सौदर्यीकरण योजना का शिलान्यास के बाद बोल रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग पांच करोड़ रुपये की लागत से इस सरना स्थल परिसर में कई सुविधाएं उपलब्ध होंगी।
उन्होंने कहा कि राज्य कि सभी सरना और मसना स्थल का संरक्षित करने का संकल्प राज्य सरकार ने लिया है, ताकि आने वाली पीढ़ी भी इसके ऐतिहासिक महत्व से भलीभांति वाकिफ रहे।
उन्होंने राज्य वासियों से कहा कि अगर उनकी नजर में कोई उत्सव स्थल को विकसित और संरक्षित करने की जरूरत है तो उसकी जानकारी दें। इस दिशा में सरकार अवश्य पहल करेगी।
प्राचीनतम व्यवस्थाओं में एक है आदिवासी समाज की व्यवस्था
मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व की प्राचीनतम व्यवस्थाओं में आदिवासी समाज की व्यवस्था को जाना जाता है।
हालांकि, आज की भौतिकवादी युग में सामंजस्य स्थापित करने में आदिवासी समाज थोड़ा पिछड़ सा गया है लेकिन आदिवासियों के हक और अधिकार तथा विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार के अवसर पर पृथक रूप से आदिवासी कल्याण मंत्रालय बनाया गया है। यह मंत्रालय आदिवासियों के उत्थान के लिए लगातार कार्य कर रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति के साथ रहना पसंद करते हैं। वे प्रकृति के पुजारी है। लेकिन, आज हर तरफ विकास की ही बात हो रही है।
ऐसे में प्रकृति और विकास के बीच सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। क्योंकि, जब प्राकृतिक व्यवस्था बचेगी, तभी आदिवासी समाज और संस्कृति जीवित रहेगी।
इस अवसर पर मंत्री चंपई सोरेन, विधायक सीपी सिंह, राजेश कच्छप, पदमश्री मुकुंद नायक और केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की, संतोष तिर्की, प्रकाश हंस, विजय बड़ाईक, रूपचंद, किशोर नायक, किशोर लोहरा और अन्य सदस्य मौजूद थे।