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पश्चिम बंगाल में दीपावली के दिन होती है मां काली की पूजा

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कोलकाता:  Dipawali (दीपावली) के दिन जहां पूरे देश में दीये जलाकर मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा (Maa Laxmi And Ganesh)  की जाती है, लेकिन पश्चिम बंगाल में अलग रिवाज है। यहां दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश से  पहले आदिशक्ति को (Maa Kali ) मां काली के रूप में पूजा जाता है।

मां कामाख्या धाम में होती है तंत्र साधना

हिंदू धर्म (Hindu Religious) की मान्यताओं के अनुसार  (Worship Of Maa Kali ) मां काली का पूजन करने से भक्तों के जीवन के सभी प्रकार के दुखों का अंत होता है। इसके अलावा मां काली के पूजन से कुंडली में विराजमान राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं।

पूरे देश में दिवाली के दिन दीप जलाए जाते हैं और (Maa Laxmi And Ganesh) लक्ष्मी गणेश की पूजा के साथ घर में समृद्धि का आह्वान किया जाता है। वहीं, बंगाली समुदाय मां काली की पूजा कर दुखों के नाश की प्रार्थना करता है।

इतना ही नहीं बंगाल के शक्तिपीठों जैसे तारापीठ मंदिर और अन्य काली स्थानों में तांत्रिक मंत्र साधना भी करते हैं, जिससे मन वांछित इच्छा पूरी होती है, ऐसी मान्यता है।  (West Bengal) पश्चिम बंगाल के साथ असम में भी यही रिवाज है, वहां मां कामाख्या धाम में तंत्र साधना होती है।

पश्चिम बंगाल में हैं शक्तिपीठ

वरिष्ठ पत्रकार और विशेषज्ञ डॉक्टर आनंद पांडे ने इस बारे में बताया कि पश्चिम बंगाल शक्ति की भूमि है। दूसरे राज्यों में जहां बाबा भोले, विष्णु या अन्य देवी-देवताओं के विशालकाय मंदिर हैं, वही पश्चिम बंगाल में शक्तिपीठ हैं, जैसे कालीघाट, तारापीठ, दक्षिणेश्वर आदि।

माना जाता है सात्विक स्वरूप का प्रतीक

दीपावली अंधेरे पर प्रकाश के विजय का त्यौहार है। जब भी कोई (Auspicious Festival) शुभ त्यौहार मनाया जाता है तो लोग अपने इष्ट देव को पूजते हैं। बंगाल शक्ति की भूमि है, इसलिए लोग सदियों से  (Maa Kali) मां काली की आराधना इस दिन करते हैं। बंगाल में बाकी पूजा की तरह मां काली की भी मूर्ति स्थापित कर वैदिक रीति रिवाजों के मुताबिक आराधना होती है।

सरसों के तेल अथवा घी में कम से कम 12 अथवा 24 घंटे तक दीप जलाने का भी रिवाज जहां रहा है। दिवाली के दिन मां की पूजा में मिष्ठान का इस्तेमाल होता है जो माता के सात्विक स्वरूप का प्रतीक माना जाता है।

बंगाल के लोग मां काली की करते हैं पूजा

डॉक्टर पांडे ने बताया कि काली बंगाल की कुलदेवी (Kuldevi) हैं इसीलिए दिवाली जैसे शुभ पर्व पर देवी काली की पूजा होती है। यह सर्वविदित है कि दीपावली के दिन भगवान राम रावण वध के बाद अयोध्या लौटे थे जिनके स्वागत में दीप जलाए गए थे। ऐसे शुभ मुहूर्त में लोग अपने कुल देवताओं की पूजा करते हैं और बंगाल के लोग मां काली की।

शक्तिपीठों में होती हैं विशेष रिवाज

डॉक्टर पांडे ने बताया कि बंगाल के शक्तिपीठों में दीपावली के दिन होने वाली (Maa Kali)  मां काली की पूजा बेहद खास होती है। जादू टोना या मनवांछित मुराद पूरी करने के लिए तंत्र मंत्र की साधना भी किया जाता है। इसलिए उस दिन मां को पूजा के तौर पर काली तिल और काली उड़द भी चढ़ाते हैं।

कई जगहों पर नारियल, कबूतर और मुर्गा भी चढ़ाकर तंत्र साधना होती है। इसके अलावा मां काली की प्रतिमा के सामने सरसों का तेल जलाकर काली साधना मंत्र का जाप होता है। कई तांत्रिक 108 बार तो कुछ 1008 बार मंत्र का जाप करते हैं जिससे सिद्धियां प्राप्त होने के दावे किए जाते हैं।

दीपावली की तरह ही फूटते हैं पटाखे

डॉक्टर पांडे ने यह भी बताया कि जिस तरह से पूरे देश में दीपावली के दिन दीप जलाकर बच्चे आतिशबाजी करते हैं। पश्चिम बंगाल में एक दिन पहले ही काली पूजा के दिन आतिशबाजी करते हैं और दीपावली शुरू हो जाती है। छोटी दिवाली की तरह पूरे राज्य में मंदिरों में घरों में, चौक चौराहों पर दीप जलाए जाते हैं।

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