गोरखपुर: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने कहा कि गीता प्रेस एक सामान्य प्रिंटिंग प्रेस नहीं अपीतु समाज का मार्गदर्शन करने वाला साहित्य का मंदिर है।
सनातन धर्म और संस्कृति को बचाए रखने में इसकी भूमिका मंदिरों और तीर्थ स्थलों जितनी ही महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रपति शनिवार शाम धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों के प्रकाशन की विश्व प्रसिद्ध संस्था गीता प्रेस (Geeta Press) के शताब्दी वर्ष समारोह के शुभारंभ अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि मेरे जैसे सामान्य व्यक्तियों की अवधारणा रही है कि गीता प्रेस एक प्रेस होगा जहां मशीनें होंगी, कर्मचारी होंगे।
पर, आज जो देखने को मिला है वह सिर्फ प्रेस नहीं बल्कि अद्भुत साहित्य मंदिर है। उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास प्राचीन काल से धर्म और अध्यात्म से जुड़ा रहा है हमारी अनुपम संस्कृति को पूरे विश्व में सराहा गया है भारत के धार्मिक व आध्यात्मिक सांस्कृतिक ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने में गीता प्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राष्ट्रपति कोविंद ने गीता प्रेस के महत्व को रेखांकित करते हुए गीता के एक श्लोक का उद्धरण किया। य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति। भक्तिंमयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:।
इसका अर्थ भी उन्होंने समझाया। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरे में पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद-(गीता-ग्रन्थ) को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझे ही प्राप्त होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
राष्ट्रपति कि इच्छा यहां एक बार और आने की है
श्री कोविंद ने कहा कि संभवत: इसी श्लोक की प्रेरणा से जयदयाल गोयंदका जी के मन मे गीता प्रेस की स्थापना का विचार आया होगा।
जब इस प्रेस की नींव में ही भगवत प्रेम है तो इसका नाम गीता प्रेस होना स्वाभाविक ही था। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन हेतु विश्व की सबसे बड़ी संस्था है और इसने कठिन दौर में भी सस्ते दर पर पुस्तकें उपलब्ध कराने का क्रम जारी रखा है।
स्थापना काल से अब तक 70 करोड़ से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए उन्होंने गीता प्रेस परिवार को बधाई दी।
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि भारत की सीमाओं से बाहर भी गीता प्रेस अपनी शाखाएं स्थापित कर रहा है। गीता प्रेस में नेपाल में अपनी पहुंच को नई दिशा दी है।
उम्मीद है कि पूरा विश्व भारत के दर्शन व संस्कृति से लाभान्वित होगा। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि विदेश यात्रा के दौरान वह भारतवंशियों से मिलते हैं।
उनके मन में अपनी संस्कृति के प्रति अपार लालसा है। उनकी लालसा को पूर्ण करने में गीता प्रेस बड़ा स्रोत बन सकता है। विदेशों में गीता प्रेस के इस कार्य में राष्ट्रपति सचिवालय मदद उपलब्ध कराएगा।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि गीता प्रेस आगमन मेरे लिए सौभाग्य की बात है। यह संयोग है या दैव योग, यह नहीं कह सकता लेकिन यह जरूर पिछले जन्मों के कुछ पुण्य का फल है।
यहां कर्मचारियों से मिलने का अवसर मिला। उनकी निष्ठा, ईमानदारी, सद्भावना व अनुशासन अद्वितीय है।
गीता प्रेस के मुख्य द्वार से लेकर यहां विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित ग्रन्थ अनेकता में एकता के सिद्धांत को दशार्ने वाले हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि गीता प्रेस व लीलाचित्र मंदिर आकर उन्हें अनुभव हुआ कि अभी उनकी यात्रा अधूरी है। उनकी इच्छा यहां एक बार और आने की है। ईश्वर से वह प्रार्थना करेंगे कि उनकी यह इच्छा जल्द पूरी हो।
राष्ट्रपति ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) कहा कि प्राचीन काल से हमारे यहां धर्म और शासन एक दूसरे के पूरक कहे जाते हैं। यहां मौजूदभी इन दोनों भूमिकाओं के समाहित रूप हैं।
वह मुख्यमंत्री भी हैं और पीठाधीश्वर भी। दोनों भूमिकाओं का एक में समाहित होना बहुत बड़ी बात है।
श्री कोविंद लीलाचित्र मंदिर पहुंचने वाले दूसरे राष्ट्रपति हैं
पुस्तकों के प्रकाशन की विश्व प्रतिष्ठित संस्था है बल्कि इसकी ख्याति इसके अनूठे लीलाचित्र मंदिर के लिए भी है।
गीता प्रेस आगमन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश की प्रथम महिला नागरिक सविता कोविंद, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ सबसे पहले लीलाचित्र मंदिर का अवलोकन किया। इसे देख प्रसन्नता के भाव मे वह अभिभूत नजर आए।
लीलाचित्र मंदिर की दीवारों पर श्रीमद्भागवत गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) के 18 अध्यायों के श्लोक संगमरमर पर लिखे हुए हैं। साथ ही देवी-देवताओं के सैकडों चित्र हैं।
गोस्वामी तुलसीदास, संत कबीर और दादू के दोहों का अंकन भी मंदिर में किया गया है। इन सबका अवलोकन कर राष्ट्रपति भाव विभोर हो गए।
वह बरबस ही बोल पड़े, इस समय यह कार्य संभव नहीं है। लीलाचित्र मंदिर में उन्होंने सीडी के आकार की हस्तलिखित गीता देख यह जानने जिज्ञासा जताई कि इसने किसे लिखा है।
लिखने वाले कि जानकारी न मिलने पर मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, मैं मान लेता हूं कि जिसने गीता रची, उन्होंने ही लिखवाई होगी। श्री कोविंद लीलाचित्र मंदिर (Leelachitra Temple) पहुंचने वाले दूसरे राष्ट्रपति हैं।
29 अप्रैल 1955 में इसका उद्घाटन करने देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद आए थे। तब उनके साथ गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में अगवानी करने को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज उपस्थित थे।
आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के गीता प्रेस/लीलाचित्र मंदिर आगमन पर मुख्यमंत्री के साथ ही गोरक्षपीठाधीश्वर की भूमिका निभा रहे योगी आदित्यनाथ अगवानी को मौजूद रहे।