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नोटबंदी पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट की वो अकेली जज जिनकी अलग रही राय, जानें बी.वी. नागरत्ना ने क्यों कहा- नोटबंदी को गैरकानूनी?

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नई दिल्ली: केंद्र के 2016 के नोटबंदी (Demonetization ) के फैसले पर बहुमत के विचार से असहमत सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना (Justice B.V. Nagaratna) ने कहा कि यह गैरकानूनी था।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केंद्र सरकार का उद्देश्य अच्छा हो सकता है, लेकिन फैसले के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर (Justice S.A. Nazeer) की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्ना ने केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया।

शीर्ष अदालत ने केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण (Demonetization) के फैसले को 4:1 के बहुमत से सही ठहराया।

नोटबंदी पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट की वो अकेली जज जिनकी अलग रही राय, जानें बी.वी. नागरत्ना ने क्यों कहा- नोटबंदी को गैरकानूनी? - The only judge of the Supreme Court who had a different opinion in the decision on demonetisation, know B.V. Why did Nagaratna say that demonetisation is illegal?

500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों का Demonetization दूषित और गैरकानूनी था?

अपने अल्पमत के फैसले में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण दूषित और गैरकानूनी था।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा: मेरा मानना है कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना गैरकानूनी है। इन परिस्थितियों में 500 रुपये और 1,000 रुपये के सभी नोटों का विमुद्रीकरण गलत है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने जोर देकर कहा कि वह इस कार्रवाई के उद्देश्यों पर सवाल नहीं उठा रही हैं, लेकिन 2016 में हुई कार्रवाई के बाद से केवल कानूनी दृष्टिकोण (Legal Perspective) और यथास्थिति को बहाल नहीं किया जा सकता है।

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पूरी कवायद 24 घंटे में की गई?

उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया और पूरी कवायद 24 घंटे में की गई।

उन्होंने कहा, यह आवश्यक है कि संसद, जिसमें देश के लोगों के प्रतिनिधि शामिल हैं, इस मामले पर चर्चा करे और इसके बाद मामले को मंजूरी दे।

उन्होंने कहा कि प्रस्ताव केंद्र से उत्पन्न हुआ था, जबकि RVI की राय मांगी गई थी और RBI द्वारा दी गई ऐसी राय को RBI अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत सिफारिश के रूप में नहीं माना जा सकता है।

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न्यायमूर्ति नागरत्ना (Justice Nagaratna) ने कहा, संसद को अक्सर लघु रूप में एक राष्ट्र के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह लोकतंत्र का आधार है। संसद लोकतंत्र का केंद्र है, ऐसे महत्वपूर्ण मामले में इसे अलग नहीं छोड़ा जा सकता है।

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