नई दिल्ली: CJI DY चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग (live streaming) के मद्देनजर जजों को शब्दों का सावधानी से चयन पर जोर दिया है। CJI ने कहा कि कोर्ट की कार्यवाही का प्रतिकूल पहलू भी है।
इसके बाद जजों को एक शब्द-शब्द सावधानी से बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए जजों को Training दिए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया (Social Media) के युग में उनका हर शब्द सार्वजनिक होता है। CJI ने कहा कि देश भर की अदालतें जल्द ही ‘पेपरलेस’ (‘Paperless’) हो सकती हैं।
दुनियाभर में कई अदालतें AI की मदद ले रही हैं
CJI ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ की कार्यवाही के विवरण को तैयार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वकीलों को किसी भी कमी को दूर करने के लिए Record की प्रतिलिपि दी की जाती है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artifical Intelligence) संभावनाओं से भरा है।
आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई जज किसी वैधानिक अपील में 15,000 पृष्ठों के रिकॉर्ड को खंगालेगा? AI आपके लिए पूरा रिकॉर्ड तैयार कर सकता है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में कई अदालतें AI की मदद ले रही हैं।
अदालत में जो कुछ होता है वह बहुत गंभीर चीज है
हालांकि, CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि AI का एक दूसरा पहलू भी है। उन्होंने कहा, उदाहरण के लिए, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artifical Intelligence) को हमें यह बताने में बहुत मुश्किल होगी कि एक आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के बाद क्या सजा दी जाए। चीफ जस्टिस ने कहा कि Youtube पर कोर्ट की सुनवाई की कई फनी क्लिप हैं।
इन्हें Control किए जाने की जरूरत है क्योंकि अदालत में जो कुछ होता है वह बहुत गंभीर चीज है। पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के जज के क्लिप हैं जो एक IAS अधिकारी से पूछते हैं कि उन्होंने उचित कपड़े क्यों नहीं पहने थे, या गुजरात हाईकोर्ट के जज ने एक वकील से पूछा कि वह अपने मामले के लिए तैयार क्यों नहीं थीं।
सीधे प्रसारण का एक दूसरा पहलू भी है: चीफ जस्टिस
उन्होंने कहा कि Youtube पर कई हास्यास्पद (Ridiculous) चीजें दिखती हैं जिन पर नियंत्रण की जरूरत है, क्योंकि यह गंभीर चीज है। अदालत में जो होता है वह बेहद गंभीर है।
चीफ जस्टिस (Chief Justice) ने कहा कि सीधे प्रसारण का एक दूसरा पहलू भी है। उन्होंने कहा कि जजों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है क्योंकि सोशल मीडिया के युग में अदालत में उनके द्वारा कहे गए प्रत्येक शब्द सार्वजनिक दायरे में हैं।
उन्होंने कहा कि कई बार नागरिकों को यह एहसास नहीं होता है कि सुनवाई के दौरान जज जो कहते हैं वह बातचीत शुरू करने के लिए होता है।