लाइफस्टाइल डेस्क: Aarti (आरती) देवी-देवता या अपने आराध्य, अपने ईष्ट देव की स्तुति की उपासना की एक विधि है।
आरती के दौरान भक्तजन (Bhajan) गाने के साथ साथ धूप दीप एवं अन्य सुगंधित पदार्थों से एक विशेष विधि से अपने आराध्य के सामने घुमाते हैं।
मंदिरों (Mandir) में सुबह उठते ही सबसे पहले आराध्य देव के सामने नतमस्तक हो उनकी पूजा के बाद आरती की जाती है। इसी क्रम को सांय की पूजा (Puja) के बाद भी दोहराया जाता है व मंदिर के कपाट रात्रि में सोने से पहले आरती के बाद ही बंद किये जाते हैं।
तमिल में आरती को ही दीप आराधनई कहा जाता है
मान्यता है कि आरती (Arti) करने वाले ही नहीं बल्कि आरती में शामिल होने वाले पर भी प्रभु की कृपा होती है। भक्त को आरती का बहुत पुण्य मिलता है।
आरती करते समय देवी-देवता को तीन बार पुष्प (Flowers) अर्पित किये जाते हैं। मंदिरों में तो पूरे साज-बाज के साथ आरती की जाती है।
कई धार्मिक स्थलों (Religious Place) पर तो आरती का नजारा देखने लायक होता है। बनारस के घाट हों या हरिद्वार, प्रयाग हो या फिर मां वैष्णों का दरबार यहां की आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। तमिल में आरती को ही दीप आराधनई कहा जाता है।
आरती को पंच-प्राणों की प्रतीक
आरती करते समय भक्त का मन स्वच्छ होना चाहिये अर्थात उसे पूरे समर्पण के साथ आरती करनी चाहिये तभी उसे आरती का पुण्य प्राप्त होता है।
माना जाता है कि भक्त इस समय अपने अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं इसलिये इसे पंचारती भी कहा जाता है। इसमें भक्त के शरीर के पांचों भाग मस्तिष्क, हृद्य, कंधे, हाथ व घुटने यानि साष्टांग होकर आरती करता है इस आरती को पंच-प्राणों (Panch Paran) की प्रतीक आरती माना जाता है।