नई दिल्ली: मुर्दों (Dead) के साथ सेक्स (Sex) करना अपराध की नहीं है। जी हां आपने सही सुना।
ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि अदालत कह रही है। अदालत (Court) के इस फैसले से एक दरिंदा बच गया।
उसने ऐसी धारा का जिक्र किया जिसके बारे में आम इंसान नहीं जानता है।
उसने कानून (Law) में कमी का दांव ऐसा खेला जिसमें वो बच निकला। कोर्ट ने भले ही उसे बरी कर दिया है, लेकिन केंद्र को भी निर्देश दिया है कि इसपर बदलाव करे।
कानून के हिसाब से शव व्यक्ति नहीं
दरअसल एक आरोपी ने पहले लड़की की हत्या की फिर उसकी लाश के साथ Sex किया। निचली अदालत ने हत्या और रेप का दोषी ठहराया।
सजा दी, जुर्माना लगाया। लेकिन 8 साल बाद अब कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने उसे मर्डर (Murder) का दोषी तो माना लेकिन रेप केस (Rape Case) में बरी कर दिया।
वजह है कानून में अस्पष्टता। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कानून के हिसाब से शव को व्यक्ति नहीं माना जा सकता।
लिहाजा रेप से जुड़ी IPC की धारा 376 आरोपी पर लागू नहीं होती। धारा 375 और 377 के तहत भी शव को मानव या व्यक्ति नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने 6 महीने के भीतर धारा 377 में बदलाव करने का दिया निर्देश
अदालत ने भले ही आरोपी को रेप केस में बरी किया लेकिन केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह 6 महीने के भीतर IPC की धारा 377 में बदलाव करे और मानव शव या जानवरों की लाश के साथ Sex पर सजा का प्रावधान करे।
High Court ने केंद्र से कहा है कि वह नेक्रोफीलिया और शवों के साथ सेक्स को IPC की धारा 377 के दायरे में लाए।
आखिर क्या है नेक्रोफीलिया (Necrophilia) और कानून में किस खामी की वजह से सजा से बच गया दरिंदा, आइए समझते हैं।
जानिए हाई कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट ने कहा, समय आ गया है कि केंद्र सरकार (Central government) मृतक के शरीर की गरिमा के अधिकार की रक्षा के लिए IPC की धारा 377 के प्रावधानों में बदलाव करे और उसके दायरे में पुरुष, महिला या जानवरों के मृत शरीर को भी शामिल करे या फिर Necrophilia पर सजा के लिए अलग से कानून बनाए।
30 मई को पास किए अपने आदेश में कोर्ट ने ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका का हवाला दिया जिन्होंने Necrophilia या शव के साथ सेक्स को आपराधिक बनाते हुए उनके लिए सजा का प्रावधान किया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि प्रकृति की व्यवस्थाओं के खिलाफ Sex पर आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि दोषियों पर जुर्माने का भी प्रावधान होना चाहिए।
क्या है मामला
सबसे पहले पूरे मामले पर एक नजर डालते हैं। वाकया 25 जून 2015 को कर्नाटक के तुमकुर जिले के एक गांव का है।
रंगराजू उर्फ वाजपेयी ने गांव की ही एक 21 साल की महिला की हत्या कर दी और उसके शव के साथ रेप किया।
9 अगस्त 2017 को तुमकुर के जिला एवं सत्र न्यायालय ने रंगराजू को Murder और Rape का दोषी ठहराया।
14 अगस्त को उसे हत्या के जुर्म में उम्रकैद (Life prison) और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा दी।
वहीं रेप केस में 10 साल कैद और 25 हजार जुर्माना लगाया गया।
निचली अदालत के फैसले को रंगराजू ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
उसने दलील दी कि उसके खिलाफ IPC की धारा 376 लागू नहीं होती और निचली अदालत से सजा गलत है।
हाई कोर्ट ने आरोपी रंगराजू को रेप केस में किया बरी
जस्टिस बी. वीरप्पा की अगुआई वाली हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने कहा कि भले ही धारा 377 अप्राकृतिक सेक्स की बात करता है लेकिन इसके दायरे में शव नहीं आते।
महिला के शव के साथ Sex पर धारा 376 भी लागू नहीं होती, लिहाजा निचली अदालत ने सजा देने में गलती की।
हाई कोर्ट ने आरोपी रंगराजू को रेप केस में बरी तो कर दिया लेकिन केंद्र को 6 महीने के भीतर कानून में खामी को दुरुस्त करने का निर्देश दिया।
क्या है नेक्रोफीलिया?
मरियम वेबस्टर डिक्शनरी (Merriam Webster Dictionary) के मुताबिक नेक्रोफीलिया शवों के प्रति सेक्सुअल आकर्षण (Sexual Attraction) को कहते हैं।
दरअसल, नेक्रोफीलिया दो ग्रीक शब्दों (Greek Words) के मिश्रण से बना है- नेक्रो यानी शव और फीलिया यानी आकर्षण।
नेक्रोफीलिया एक मानसिक विकृति है जिसमें इससे पीड़ित शख्स मरे हुए लोगों के प्रति आकर्षित होता है और शव के साथ सेक्स करता है।
इससे पीड़ित अक्सर सीरियल किलर बन जाते हैं। वह पहले हत्या करते हैं और उसके बाद शव के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं।
नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड में सुरेंद्र कोली भी Necrophilia से पीड़ित था।
कानून में कमी का मिला आरोपी को लाभ
Karnataka High Court ने केंद्र सरकार को 6 महीने के भीतर नेक्रोफीलिया या शव के साथ सेक्स पर सजा के प्रावधान के लिए IPC की धारा 377 में बदलाव का निर्देश दिया।
कोर्ट ने साथ में केंद्र को यह भी निर्देश दिया कि ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के मुर्दाघरों को CCTV कैमरे से लैस किया जाए।
दरअसल, Necrophilia को लेकर IPC में कोई प्रावधान ही नहीं है। धारा 377 अप्राकृतिक सेक्स पर लागू होता है।
इस धारा के मुताबिक, प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ सेक्स पर उम्रकैद या 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
लेकिन इसमें ये साफ नहीं किया गया है कि शवों को भी व्यक्ति माना जाएगा।
काफी विवादित रही है IPC की धारा 377
IPC की धारा 377 वैसे भी काफी विवादित रही है। 1861 में ब्रितानी हुकूमत के दौर में इसे बनाया गया था।
इसके तहत समलैंगिक यौन संबंधों को अप्राकृतिक बताते हुए उसके लिए सजा का प्रावधान था।
लेकिन 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में बालिगों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया।
हालांकि, नाबालिगों के साथ समलैंगिक संबंध और बिना सहमति के संबंध और जानवरों के साथ सेक्स पर सजा का प्रावधान लागू रहेगा।