Supreme Court’s Strict Comment on Misuse of 498A: दहेज उत्पीड़न के मामलों (Dowry harassment Cases) में कई बार जो आरोप लगाए जाते हैं, उसके कोई सबूत तक नहीं होते, लेकिन उन्हें सजा मिलने लगती है।
इसलिए अदालतों को ऐसे मामलों की ढंग से पड़ताल करनी चाहिए क्योंकि पूरा परिवार इसकी सजा भुगतता है। उन्हें लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान जेल में रहना पड़ जाता है।
यह बात Supreme Court ने एक मामले में महाराष्ट्र के एक शख्स को दहेज उत्पीड़न के आरोपों से बरी करते हुए कही। इस मामले में वह तीन सालों से जेल में था।
इसके अलावा बीड़ में लैब असिस्टेंट के तौर पर वह जो नौकरी कर रहा था, वह भी चली गई थी। उसे दहेज उत्पीड़न केस में दोषी करार दिया गया तो 23 नवंबर, 2015 को उसकी नौकरी ही चली गई थी।
ट्रायल कोर्ट (Trial court) की तरफ से शख्स को दोषी करार देने के आरोप को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके साथ ही जस्टिस सीटी रवि कुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा, हमारी राय है कि अदालतों को ऐसे मामलों पर पूरी जांच करनी चाहिए।
इससे पूरा परिवार झेलता है और बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए आरोपों के चलते उन्हें सजा काटनी पड़ती है। यहां तक कि जो आरोप उन पर लगते हैं, उसके कोई सबूत तक नहीं होते।
दहेज उत्पीड़न के कानून में बदलाव होना चाहिए
अदालत ने कहा कि 2010 में भी प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड सरकार के मामले में हमने ऐसा ही कहा था। कोर्ट ने कहा कि तब सरकार से हमने कहा था कि दहेज उत्पीड़न के कानून में बदलाव किया जाए।
ऐसा इसलिए क्योंकि लड़की वालों की ओर से लगाए गए आरोपों के चलते पति और उसके परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है। दरअसल Section 498A के तहत दहेज उत्पीड़न का केस तब दर्ज किया जाता है, जब महिला को उसके पति अथवा परिवार या फिर दोनों ने प्रताड़ित किया हो।
ऐसा उत्पीड़न दहेज की मांग को लेकर होता है तो इस कानून के दायरे में सजा का प्रावधान है। तब कोर्ट ने यहां तक कहा था कि इस कानून का ऐसा दुरुपयोग हो रहा है कि अदालतों में शिकायतें लंबित पड़ी हैं। इसके अलावा समाज में सद्भाव भी बिगड़ रहा है। लोगों की खुशियां छिन रही हैं।
इसलिए यह सही वक्त है कि विधायिका विचार करे और कानून में जरूरी बदलाव किए जाएं। वास्तविकता को समझते हुए ये बदलाव करने चाहिए।
14 साल पुराने उस फैसले को ही एक तरह से दोहराते हुए कहा कि आज भी ऐसी ही स्थिति है। बड़े पैमाने पर दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं। कई बार इन मामलों लगाए गए आरोप सच्चाई से परे होते हैं।