रांची: झारखंड जदयू (Jharkhand JDU) के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को नीतीश कुमार ने बिहार से राज्यसभा से उम्मीदवार बनाकर एक संकेत दिया है कि पार्टी आने वाले समय में झारखंड में भी संगठन को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर सकती है।
सिर्फ एकबार वर्ष 2005 में मांडू से विधानसभा चुनाव जीतने वाले खीरू महतो को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया गया है।
खीरू महतो को विगत 14 सितंबर 2021 को झारखंड जदयू की कमान सौंपी गई थी। जेडीयू के केंद्रीय नेतृत्व ने खीरू महतो को बिहार से राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाकर एक तीर से दो निशाना साधा है।
एक ओर टिकट चाहने वाले बिहार जेडीयू के नेताओं की दावेदारी को निपटा दिया। वहीं खीरू महतो को राज्यसभा से उम्मीदवार बनाकर पार्टी की ओर से यह संकेत दिया गया है कि जदयू फिर झारखंड में अपने पैर पसारने की कोशिश करेगी।
खीरू महतो को नीतीश कुमार और ललन सिंह की निकटता जगजाहिर है।
वर्ष1953 में जन्में 69 वर्षीय खीरू महतो ने 1978 में मुखिया के चुनाव से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था।
समता पार्टी के दौर में कद्दावर नेता जॉर्ज फर्नांडिस जब भी झारखंड आते थे तो खीरू महतो साथ होते थे।
हालांकि झारखंड में कुरमी-महतो नेता के रूप में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और कांग्रेस नेता जलेश्वर महतो से खीरू महतो बहुत पीछे हैं। मांडू से बाहर उनकी लोकप्रियता नहीं के बराबर है।
बावजूद इसके जदयू ने झारखंड के कुरमी नेता को बिहार से उम्मीदवार बनाकर झारखंड के कुरमियों को साधने का प्रयास किया है।
माना जा रहा है कि खीरू महतो को राज्यसभा भेजने का निर्णय झारखंड में जनाधार खो चुकी पार्टी को ऑक्सीजन का काम कर सकती है।
एक समय झारखंड में इस पार्टी के पांच-छह विधायक होते थे। एनडीए गठबंधन की सरकार में भी इसकी पूरी भागीदारी रहती थी।
जदयू ने चुनाव लड़ा तो पार्टी की स्थिति बद से बदतर हो गई
लेकिन भाजपा से अलग होते ही वर्ष 2009 में इसकी सीटें घटकर दो हो गईं। वर्ष 2014 तथा 2019 के विधानसभा चुनावों में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका।
इस पार्टी के अधिसंख्य विधायक कुरमी जाति से ही रहे। बाद में भी सभी ने अपना जनाधार खो दिया। पार्टी से मंत्री के पद संभाल चुके कुरमी नेता जलेश्वर महतो, लालचंद महतो आदि दूसरे दलों में चले गए। हाल ही में भी पार्टी के कई नेता भाजपा में जा चुके हैं।
कभी झारखंड के कई नामचीन चेहरे जेडीयू से जुड़े थे। इसमें राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, जलेश्वर महतो, रमेश सिंह मुंडा, बैद्यनाथ राम, रामचंद्र केसरी, सुधा चौधरी, राजा पीटर आदि नाम शामिल हैं लेकिन आज कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
साल 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें जेडीयू के छह विधायक जीते थे।
साल 2009 में जदयू ने चार सीट गवां दी और सिर्फ दो सीटों पर ही जीत हासिल की और पार्टी का वोट प्रतिशत भी काफी गिर गया।
वहीं साल 2014 में जब भाजपा से अलग होकर जदयू ने चुनाव लड़ा तो पार्टी की स्थिति बद से बदतर हो गई।