नई दिल्ली: प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए लखनऊ के एक मस्जिद के सह मुतवली ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को चुनौती देने वाली याचिका में मेरिट नहीं है, लिहाजा उसे खारिज किया जाए।
याचिकाकर्ता ने इस मामले में दखल याचिका दायर की है और कहा है कि उन्हें पक्ष रखने की इजाजत दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट में लखनऊ के टीले वाली मस्जिद के सह मुतवली ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि लखनऊ का वह मस्जिद 350 साल पुरानी है।
इस मस्जिद की जमीन पर दावा किया गया है कि वह मंदिर की जगह है और इसके लिए लखनऊ कोर्ट में सूट पेंडिंग है।
मंदिर की जमीन होने के दावे के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता का मकसद मुस्लिम समुदाय के लोगों को अलग-थलग करना है।
याचिका की भाषा स्तब्धकारी है। उसमें कहा गया है कि आक्रमणकारियों ने भारत में पूजा स्थल तोड़े हैं।
बार-बार हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के अधिकारों की बात कही गई है और उनके पूजा स्थल के तोड़े जाने की बात कही गई है और बताया गया है कि 1192 से आक्रमणकारियों ने भारत में पूजा स्थल पर अटैक किया।
ये याचिका राजनीतिक हमला है, इसका कानून से लेना देना नहीं है।
कानूनी अधिकार तर्कहीन तथ्यों पर नहीं हो सकता है।
याची ने कहा कि भारतीय लोग लखनऊ और दिल्ली के मस्जिद पर भी गर्व करते हैं और हरिद्वार और बद्रीनाथ व कामाख्या मंदिर पर भी गर्व करते हैं साथ ही गोवा के चर्च पर भी उन्हें गर्व है।
ये सब भारतीय धरोहर हैं। दिल्ली का जामा मस्जिद की अगर बात की जाए तो ये सिर्फ समुदाय विशेष का नहीं बल्कि भारतीयों की धरोहर है। सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च भारतीय संस्कृति का पार्ट है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उस याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के प्रावधान को चुनौती दी गई है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के तहत प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 को दो धार्मिक स्थल जिस समुदाय का था, भविष्य में उसी का रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट में दरअसल दाखिल याचिका में दर प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के प्रावधान को चुनौती दी गई है।